चहुँओर
जब बिखरी हुई पड़ी है
झूठ और बेईमानी
दिलों में बसते हो मक्कारी,
पाप, हठ और अहंकार
खिलखिला रहे हो
हर आँगन में,
तो कहीं
किसी कोने से
सिसकती
भयभीत सी
दबी पड़ीं
सच्चाई और ईमानदारी,
निराशा में
आस लिए
पुकारती रहती हैं।
पर
उसके दबें दबे से स्वर
झूठ की कर्कशता में
फीके फीके लगते है,
न तो उसमें
कोई सनसनी है
न कट्टरता,
न कोई वादा
न कोई दिवास्वप्न
न कोई आकर्षण
वह तो बस यथार्थ है
हक़ीक़त है,
बस यही आस है
उसके जीवन की,
उम्र छोटी सी है
झूठ फ़रेब की,
उसके बाद…
लोग उसे ही तलाशेंगे
लोग उसे ही तराशेंगे
लोग उसे ही सजायेंगे
लोग उसे ही संजोयेंगे
लोग उसे ही निहारेंगे।