Friday, February 25, 2011

रिश्ते

कहते है शादी वो लड्डू है जो खाए वो पछताए जो ना खाए वो भी पछताए .... पर इक बंधन है , आत्माओ का ! दो अनजान लोगों के मिलन का .... हाँ आज के दौर अक्सर नहीं होता पर कभी होता था ! वही दौर था जो रिश्तों के मुल्यों का सही मुल्यांकन करता था इक - दूसरे के भावनाओ को समझता था .... सम्मान करता था ! आज भी सब कुछ वही है वही रिश्ते- नाते पर नहीं है तो उन लोगों जैसी सोच ... आत्मीयता ... अपनापन ...! ड्रम के तीब्र शोंर के बिच ढोल की थाप न जाने कहाँ खों गयी ... सब देख रहे है पर आधुनिकता के नाम खामोश ..! यह सामजिक विकृति ही है कहाँ ले जाएगी किसी को नहीं पता ! सब तो बस दो पल का जीवन जीना चाहते है आज ही जी ले ...... कल हो ना हों !
भविष्य से इतना डर कायरता ही है ! शायद अपने आप पर भरोसा नहीं ... ऐसा नहीं है ! भरोसा आज के रोज़ बन रहे नए -नए रिश्तों पर नहीं है ! ए जाने - अनजाने रिश्ते मोबाइल सन्देश की तरह हो गए है पढ़ा फिर डिलीट कर दिया और स्पेस अगले सन्देश के लिए छोड़ दिया ! समय के साथ परिवर्तन होता है जरूरी भी है .. नहीं तो इक ही माहौल में रहते - रहते लोगों में विकृति आ जाती है पर परिवर्तन सामाजिक रीति रिवोजों , संस्कारों , आदर्शों और भावनाओं को सम्मलित करते हुए हो तो शायद रिश्तों की वह खुशबू , ताजापन व मीठास बाज़ार में मिल रहे नित नए नए मिठाइयो की तरह बरक़रार रहे ..... सामाजिक समरसता बनी रहे .. आत्मीयता बनी रहे ... हर तरफ अपनापन रहे !
हम नहीं जानते अब ऐसा हो पायेगा या नहीं पर रिश्ते की जड़ मज़बूत है तो नाव की तरह वो किनारे पहुचां ही देती है , वो नहीं देख पाती कि उसमे सफ़र करने वाला उसके भावनाओ का ख्याल रखता है या नहीं पर शायद वो देख भी नहीं सकती ....! हम तो सब देख सकते है फिर भी इक - दूसरे के भावनाओं को नहीं समझ पाते और चाहते है किनारे पहुच जाए , फिर क्या फायदा सजीव होने का ..... हमसे भली तो वो नाव निर्जीव होकर भी सजीव होने का अहसास कराती है !
आज प्यार क़ी जगह कहाँ है .... लोगों के दिल से निकल कर कहाँ चला गया ! मैंने भी आफत ले ली इक युवा जोड़ी से पूंछ बैठा .... वो बोला .. दिखता नहीं पार्कों में , झाड़ियों में ....! सब दिखता है ... सब देखते है , ऐसा हर रोज़ होता है ! शहर हो या गाव हर जगह होता है , यह भी रिश्ते है जिसमे केवल अपनाहित है ... स्वार्थ है ... विकृति है ....! नहीं है तो रिश्तों का आदर्श .... संस्कार .......!

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