धूप की तपिश से
झुलसती है जींदगी
छाँव के आँगन में
चहकती है जींदगी
सच झूठ के दरम्यान
हक़ीक़त से दूर है जींदगी
एक राह की तलाश में
चौराहे पर तकती है जींदगी
कुछ तो है …
जो सुलझाने नहीं देती
वर्ना कौन चाहता है
उलझी सी हो जींदगी।
धूप की तपिश से
झुलसती है जींदगी
छाँव के आँगन में
चहकती है जींदगी
सच झूठ के दरम्यान
हक़ीक़त से दूर है जींदगी
एक राह की तलाश में
चौराहे पर तकती है जींदगी
कुछ तो है …
जो सुलझाने नहीं देती
वर्ना कौन चाहता है
उलझी सी हो जींदगी।
यह कहानी मैंने कई बार पढ़ी है
एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं।
उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है।
महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई।
उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी।
क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।
" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया।
असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?"
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।"
दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई।
महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।"
एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी।
एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है।
अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई।
कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है |
इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।"
'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती...
एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा
"सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों।
यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा,
"मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे।
सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..?
लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"
और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।
'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई।
अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
हम सबको इस निकृष्टता से दूर प्रत्येक के लिए सम्मान और सेवा का भाव होना चाहिए।
बात थी
बात थी भी नहीं
बात बस इतनी सी है
हम जानते हैं जानते वो भी है
पर उनका नज़रअन्दाज़ कर जाना
बात को बढ़ा गया…
हम जुदा तो थे नहीं
हमें जुदा कर डाला…
हममे बैर तो था नहीं
हममे दुश्मनी का बीज बो गया…
बस बात ही तो थी
शुरू होती ख़त्म हो जाती
न कटुता होती न अकेलापन
सब साथ होते ख़ुशियों के संग
चुप्पी तोड़ कर देख लो एक बार
सब अपने होंगे सबने होगा अपनापन.
हमने आज़ाद भारत में जन्म लिया, खुली साँसें खुला आसमान ख़ुशनुमा माहौल सब कुछ तो है, लेकिन हमें ये सब उपलब्धि देने वाले लोगों ने कितना संघर्ष किया। सैकड़ों साल संघर्ष किया पीढ़ी दर पीढ़ी संघर्ष किया जूझते रहे… कैसे हासिल करे आज़ादी। स्वंय के लिये अपने आने वाले नस्लों के लिए। ग़ुलामी से मुक्ति का पाना केवल स्वयं के लिए नहीं था या केवल एक व्यक्ति के लिये सवाल नहीं था। समग्र सोच थी सबके लिए था क्या हिंदू क्या मुस्लिम या सिक्ख जैन आदि… किसी का भेद नहीं रहा होगा।लक्ष्य बड़ा था सोच बड़ी थी… अंग्रेजों के साथ साथ अपने लोग के वार को भी झेलने की दृढ़ता थी तब जाकर पायी आज़ादी। आज उनके दी हुई आज़ादी के पचहत्तर साल गुजर गये अब ज़िम्मेदारी हमारी है… इसे केवल संजोकर रखने की नहीं बल्कि उनके सपनों को साकार करने की। आज़ादी के समय की समग्रता लुप्त होने लगी है… जातिय संघर्ष छुआ-छूत भी समय समय पर देखने को मिल ही जाता है… शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और सुरक्षा की शत प्रतिशत गारंटी नहीं हो पाया है अब तक। जब तक हम अपने इन दुश्मनों पर विजय प्राप्त नहीं कर लेते तब तक हमारी आज़ादी पूरी तरह सार्थक नहीं है।
आइये हम आज़ादी के पचहत्तर साल पूर्ण होने के पर्व को अमृत महोत्सव के रूप में मनाते हुए प्रण लें कि सामाजिक सद्भाव बनाए रखते हुए सभी लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, सुरक्षा आदि अनिवार्य रूप से हासिल कराने में पूरा सहयोग करेंगे।
जय हिन्द 🙏