Tuesday, August 23, 2022

जींदगी

 धूप की तपिश से 

झुलसती है जींदगी 

छाँव के आँगन में 

चहकती है जींदगी 

सच झूठ के दरम्यान 

हक़ीक़त से दूर है जींदगी 

एक राह की तलाश में 

चौराहे पर तकती है जींदगी 

कुछ तो है …

जो सुलझाने नहीं देती

वर्ना कौन चाहता है 

उलझी सी हो जींदगी।

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