धूप की तपिश से
झुलसती है जींदगी
छाँव के आँगन में
चहकती है जींदगी
सच झूठ के दरम्यान
हक़ीक़त से दूर है जींदगी
एक राह की तलाश में
चौराहे पर तकती है जींदगी
कुछ तो है …
जो सुलझाने नहीं देती
वर्ना कौन चाहता है
उलझी सी हो जींदगी।
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