Monday, April 18, 2011
हजारे जी के आन्दोलन
जब कोई किसी नेक कार्य की अगुआई करता है तो उसे बिभिन्न स्तिथियों से गुजरना पड़ता है ! कुछ लोगों को उचित स्थान नहीं मिल पता, तो किसी को उसमे किसी अमुक के होने पर नाराजगी होती है ! इसी का परिणाम उसका विरोध करना होता है ! ऐसा ही कुछ हजारे जी के आन्दोलन के साथ हो रहा है जो ठीक नहीं है ! इसे सिविल सोसाइटी में कुछ बदलाव करके इसका दायरा भी बढ़ाया जा सकता है और विरोध भी कम किया जा सकता है ! मै सिविल सोसाइटी को एक सुझाव देना चाहता हूँ की वो एक कोर कमेटी बनाए जिसमे बिभिन्न क्षेत्र के लोग हो या बिभिन्न राज्य के लोग हो, वो अपने विचारों को सिविल सोसाइटी के समक्ष रखे और सिविल सोसाइटी इसे ड्राफ्टिंग कमेटी में ! इससे लोगों की भागीदारी भी बढ़ जायेगी कुछ और बेहतर करने मौका भी बढेगा साथ ही लोगों का बिरोध भी कम होगा !
Saturday, March 26, 2011
अफसाने
(1)
ज़िन्दगी जी लिया तुमने बहुत तो
अब जिंदा क्यूँ हो ...
अभी तो मेरी हज़ारों ख्वाईसे बाकि है
कुछ तेरे लिए मेरे लिए...
अभी बोलना सिखा है मैंने तो
तुम खामोश क्यूँ हो ....
कल साथ - साथ चलेंगे इस ज़हां में
कुछ तेरे लिए मेरे लिए...
(2)
एक अंजानी आहट ने रोक दिया सफ़र मेरा,
वर्ना हम भी चले थे उन्हें रिझाने को :
आज हम आदमी बन गए काम के इस ज़माने में,
वरना मेरा भी आज राह होता मैखाने को !
वर्ना हम भी चले थे उन्हें रिझाने को :
आज हम आदमी बन गए काम के इस ज़माने में,
वरना मेरा भी आज राह होता मैखाने को !
(3)
हम अकेले है तो क्या गम है,
सफ़र में हूँ , कोई तो साथ आएगा !
जीवन की डोर तो बहुत लम्बी है,
कभी कोई तो आवाज़ लगाएगा !!
सफ़र में हूँ , कोई तो साथ आएगा !
जीवन की डोर तो बहुत लम्बी है,
कभी कोई तो आवाज़ लगाएगा !!
Tuesday, March 1, 2011
बड़ा
बड़ा होने में क्या मज़ा है... अब जाना ! बड़ा हुआ पर बड़ा बन नहीं बन पाया रह गया वही धरा पर ... अब तो आसमान की ओर सर उठा सकता हूँ उस जैसा बड़ा नहीं बन सकता ! ए ज़माना ही ऐसा है ना कोई माई - बाप , ना पहुँच .... ना दलित , ना अल्पसंख्यक ! फिर कौन सुध ले ... कैसे बनू बड़ा ! अच्छा होता की बच्चा ही रहता, जी भर मस्ती करता, अपनों का प्यार पाता ना चिंता , ना फिक्र !
फिर क्यों सपना देखा बड़ा होने का ...! अब तो सब नाराज़ ही रहते है .. दोस्तों की मस्ती ग़ुम हो गयी .. प्रेयसी कब आयी और गयी पता ही नहीं चला ! मै बड़ा होकर भी रह गया तन्हा, स्याह रात में आसमान की तरफ सिर उठा कर अनगिनत तारों को गिनने की कोशिश कर रहा हूँ ! ए जानते हुए की नहीं कर सकता पर दिल है इसे तो कही लगाना है सो लगा लिया .... अब जाना पैसे का मोल !
कल मै बच्चा था, आज बड़ा हूँ ... युवा हूँ ! कल जो हाथ नरमी से पुचकारते थे आज वो सख्ती से दुत्त्कारते है ! मेरे समझ के परे है ... समय है बितता है .. बितता गया मै युवा हो गया ! मैंने तो कुछ नहीं किया ! तब नहीं सोचता था जब बच्चा था अब सोचता हूँ .. कल क्या होगा ! लोग मुझे कैसे याद रखेंगे !
मै कैसे बड़ा बनू .. कभी खुद को देखता हूँ ... कभी समाज को ...... मै कुछ करना चाहता हूँ तो समाज रोक देता है या यूँ कहूँ कि हमारे संस्कार रोक देते है ...! हाँ संस्कार से याद आया ... आज के दौर में संस्कार है ही कहाँ ... बोफोर्स में ...., २ जी में ...., टेलीकाम में ...., अरे नहीं बाबा के पास ! काश बाबा के परिवार का होता उनका रिश्तेदार होता तो मै भी आलिशान बंगले में रहता ... आप गलत सोचते है .. जंगल और कुटियाँ अब ये केवल भग्नावाशेस है ! मुझे क्या पता पैसा कहाँ से आता है बस लोंग दे जाते है !
अरे भाई अपने आस - पास भूख - प्यास से भटकते लोगों में क्यों नहीं बाँट देते ..... पर नहीं ज़रूरतमंद लोगों को कुछ नहीं मिलता ... मिलता है फटकार ... दुत्तकार .... अपमान ! हाँ अपमान तो बहुसंख्यक संमाज़ का हो रहा है ....... दलित के नाम पर .... अल्पसंख्यक के नाम पर ...! ए समझ बचपन में नहीं था तभी हम हसाने पर हँस देते थे ... दुलारने पर गर्वित होते थे ! अब बड़ा हो गया हूँ ... कुंठित हो रहा हूँ .... रास्ते तलाश रहा हूँ बड़ा हो कर बड़ा बनाने का ........!
Saturday, February 26, 2011
गरीबी
बहुत दिन नहीं हुए ! कुछ दिन पहले मै अपने कार्य के सिलसले में एक अस्पताल गया था ! वहां अक्सर जाता हूँ मेरे द्वारा वहा पर निर्माण का कार्य कराया जा रहा है ! रविवार का दिन था वहां पर काफी लोग इकठ्ठा थे ! मै लोगों को देख कर वहा चला गया तो देखा एक आदमी का पैर कटा हुआ है और सर पर भी चोट लगी है ! डाक्टर ने ड्रेसिंग कर दी थी और दवाए दी जा रही थी ! मैंने डाक्टर से पूछा तो उन्होंने बताया कि ट्रेन में चढ़ते समय गिर कर उसके नीचे आ गया था ! घंटो ट्रेक पर पड़ा था लोग देख रहे थे कोई १०० कदम इस अस्पताल पर नहीं लाया और इतनी ही दूर स्टेशन से जीआरपी भी धंटों बाद आयी खैर वही इसे अस्पताल लायी ! वह भी इसे छोड़ कर चलता बनी !
वह आदमी अपना नाम पता सब कुछ बता रहा था और यह भी कि वह बहूत गरीब है शहर में मजदूरी करता है ! घर दूर था कोई मोबाइल नंबर या संचार सुबिधा उसके घरवालों के पास नहीं था कि उन्हें खबर किया जा सके ! उसकी हालत ख़राब हो रही थी डाक्टर ने उसे ट्रामा सेंटर भिजवा दिया ! मैंने फिर डाक्टर से पूछा कि क्या इसका पैर ठीक हो जायेगा तो उन्होंने बताया अगर ये अमीर घर का होगा तो माइक्रो सर्जरी करा कर ठीक हो सकता है वर्ना ए बिकलांग ही रहेगा !
उसकी हालत ही उसके हालात को बयान कर रहे थे ....... हमें उसके भविष्य कि स्तिथि दिखाई दे रही थी ! मन ही मन सोच रहा था काश वों गरीब ना हो ........ क्योकि गरीब होना ही किसी सजा से कम नहीं !
अल्पजन हिताय बहुजन दुखाय....
ऐसा ही कुछ हाल है उत्तर प्रदेश सरकार का ! हाई कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कह दिया हाई कि सरकारी नौकरियों के प्रोन्नति में परिणामी जेष्ठता का कोई मतलब नहीं है फिर भी सरकार पिछड़ों और सामान्य वर्ग के लोगों के साथ उनके हितो का दुराचार कर रही है ! जब कि अनुसूचित जाति के लिए सरकारी नौकरियों में भर्ती से लेकर प्रोन्नति तक कोटा निर्धारित है फिर भी इस संवर्ग को अतिरिक्त लाभ देने के लिए अन्य सभी के साथ सौतेलापन क्यों ....?
कुछ संवर्ग ऐसे है जिसमे नौकरी करने वाले को पूरी सेवा के दौरान इक प्रोन्नति भी नहीं मिल पाती, ऐसा ही इक संवर्ग है अवर अभियंता का ... शायद ही कुछ अवर अभियंता को प्रोन्नति मिल पाती है ज्यादातर लोग अपने मूल पद से ही सेवानिवृत हो जाते है ! इनके लिए छठा वेतन आयोग भी सौतेला व्यहार कर गया ! ए सी प़ी का लालीपाप दिखाकर सारे सुबिधाओं को लुट ले गया ! देश के समग्र विकास में इस वर्ग का जो योगदान है उसे आप सभी जानते है ! किसी इन्फ्रास्ट्रक्चर के कार्य को पुरा करना इनके बिना संभव नहीं है चाहे वो सड़क हो, मकान हो, पेयजल हो, रेलवे हो या बिद्दुत ..... सब कुछ इन्ही के कंधो पर फिर भी यह वर्ग उपेछित है !
सरकार को चाहिए कि सभी को सामान अवसर देते हुए उनसे अधिक से अधिक दक्षता से कम ले , पर कुछ लोगों के अधिक अवसर देते हुए बाकि को कोई अवसर ना दे क्या यह उचित है ! फिर तो हम यही कहेंगे कि " अल्पजन हिताय बहुजन दुखाय...." !
Friday, February 25, 2011
रिश्ते
कहते है शादी वो लड्डू है जो खाए वो पछताए जो ना खाए वो भी पछताए .... पर इक बंधन है , आत्माओ का ! दो अनजान लोगों के मिलन का .... हाँ आज के दौर अक्सर नहीं होता पर कभी होता था ! वही दौर था जो रिश्तों के मुल्यों का सही मुल्यांकन करता था इक - दूसरे के भावनाओ को समझता था .... सम्मान करता था ! आज भी सब कुछ वही है वही रिश्ते- नाते पर नहीं है तो उन लोगों जैसी सोच ... आत्मीयता ... अपनापन ...! ड्रम के तीब्र शोंर के बिच ढोल की थाप न जाने कहाँ खों गयी ... सब देख रहे है पर आधुनिकता के नाम खामोश ..! यह सामजिक विकृति ही है कहाँ ले जाएगी किसी को नहीं पता ! सब तो बस दो पल का जीवन जीना चाहते है आज ही जी ले ...... कल हो ना हों !
भविष्य से इतना डर कायरता ही है ! शायद अपने आप पर भरोसा नहीं ... ऐसा नहीं है ! भरोसा आज के रोज़ बन रहे नए -नए रिश्तों पर नहीं है ! ए जाने - अनजाने रिश्ते मोबाइल सन्देश की तरह हो गए है पढ़ा फिर डिलीट कर दिया और स्पेस अगले सन्देश के लिए छोड़ दिया ! समय के साथ परिवर्तन होता है जरूरी भी है .. नहीं तो इक ही माहौल में रहते - रहते लोगों में विकृति आ जाती है पर परिवर्तन सामाजिक रीति रिवोजों , संस्कारों , आदर्शों और भावनाओं को सम्मलित करते हुए हो तो शायद रिश्तों की वह खुशबू , ताजापन व मीठास बाज़ार में मिल रहे नित नए नए मिठाइयो की तरह बरक़रार रहे ..... सामाजिक समरसता बनी रहे .. आत्मीयता बनी रहे ... हर तरफ अपनापन रहे !
हम नहीं जानते अब ऐसा हो पायेगा या नहीं पर रिश्ते की जड़ मज़बूत है तो नाव की तरह वो किनारे पहुचां ही देती है , वो नहीं देख पाती कि उसमे सफ़र करने वाला उसके भावनाओ का ख्याल रखता है या नहीं पर शायद वो देख भी नहीं सकती ....! हम तो सब देख सकते है फिर भी इक - दूसरे के भावनाओं को नहीं समझ पाते और चाहते है किनारे पहुच जाए , फिर क्या फायदा सजीव होने का ..... हमसे भली तो वो नाव निर्जीव होकर भी सजीव होने का अहसास कराती है !
आज प्यार क़ी जगह कहाँ है .... लोगों के दिल से निकल कर कहाँ चला गया ! मैंने भी आफत ले ली इक युवा जोड़ी से पूंछ बैठा .... वो बोला .. दिखता नहीं पार्कों में , झाड़ियों में ....! सब दिखता है ... सब देखते है , ऐसा हर रोज़ होता है ! शहर हो या गाव हर जगह होता है , यह भी रिश्ते है जिसमे केवल अपनाहित है ... स्वार्थ है ... विकृति है ....! नहीं है तो रिश्तों का आदर्श .... संस्कार .......!
चेहरा
जब हम इस दुनिया में आते है ... तो लोग खुशिया मनाते है ! इक मासूम चेहरा भगवान का स्वरुप होता है, निर्दोष चेहरा ना दुनिया कि समझ ना दुनियादारी ... हम बड़े होते है ये बदलता रहता है , रहता है तो केवल यादें ...... लोग भी इसी से याद रखते है ! वो ऐसा था वो वैसा था .... कल समय बिताता जायेगा ... उम्र गुज़र जाएगी.. झुर्रीया पड़ जाएँगी ! जो आज है कल नहीं रहेगा पर रहेंगी यादें ... हम ऐसा करे कि ये जो आज है चेहरा लोगों के दिल में बस जाय ..... कभी अलग ना हो वही है असली चेहरा ..... जो रहता है सदैव हम रहे ना रहे ! मेरे साथ लोगों के साथ .......
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